सुनहरा घर
एक पहाड़ी पर फार्म हाउस में एक बच्चा रहता था। रोज वह भेड़ें चराने जाता, पर हर सुबह एक काम जरूर करता था-अपने घर की खिड़कियों से दूर बने एक दूसरे घर को देखा करता। उस घर की खिड़कियां सुनहरी थीं। वह कहता- मैं वहां जरूर जाऊंगा।
एक दिन उसके पिता ने कहा-आज भेड़ चराने मैं जाऊंगा, तुम घर पर रहना। बच्चे को इसी दिन का इंतजार था। पिता के जाते ही वह सुनहरी खिड़कियों के उस घर की तरफ निकल पड़ा। चलते-चलते उसे आभास हो गया कि वह जिस घर को पास समझ रहा था, वह बहुत दूर था।
पहाड़, खेतों से होते हुए जब वहां पहुंचा, शाम हो चुकी थी। पर उसे सुनहरी खिड़कियों का घर तो नहीं पर टूटी खिड़कियों वाला एक पुराना घर जरूर दिखा। उसने घर का दरवाजा खटखटाया बाहर उसी की उम्र का एक छोटा सा बच्चा आया। बच्चे ने दूसरे बच्चे से उत्सुकता से पूछा-क्यों तुमने सुनहरी खिड़कियों वाला घर देखा है। दूसरा बच्चा उसे अंदर ले आया, अपनी खिड़की पर। बच्चे ने जैसे ही वहां देखा, वह स्तब्ध रह गया। दूर कहीं उसका घर था। डूबते सूरज से सुनहरा चमकता हुआ।
सीख- जो ईश्वर ने आपको दिया है, वह बहुमूल्य है। तुलना मत कीजिए।
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